Vichar Gatha
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मैं धरती की संवेदना हूँ ,
हवाओं में ताजगी का अहसास हूँ ।
उज्जवल आकाश का राज हूँ ,
मैं वसुंधरा की शान हूँ ।
ध्यान जो मेरा नहीं रखेगा ,
अस्तित्व उसका खतरे में होगा ।
मै परिवेशी वायु गुणता हूँ ,
मृदा – धर्म रक्षिता हूँ ।
जल की मृदुलता – मापक हूँ ,
धरती पर जीवन का संवाहक हूँ ।
न रखोगे ध्यान जो मेरा ,
मै सब कुछ कलुष करता हूँ ।
मै हूँ स्वच्छ पर्यावरण …
धरती माँ का संरक्षक ,
खाद्य सुरक्षा , चक्र प्रवर्तक ।
जीवन – रक्षा पथ प्रदर्शक ,
ब्रह्माण्ड धरा नित संवाहक ।
मुझमे है निहित…
सैकड़ों ब्रह्माण्ड और आकाश गंगा ,
पृथ्वी , वनस्पतियाँ और आदि गंगा ।
मेरी ही अर्चन से ….
आह्लादित होगा , जग सारा ,
धरती , वायु और नभ तारा ।
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