Vichar Gatha
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बादलों की उमड़ है ऐ ऐसी घनी
दिल उकसाता चला तो चल ही गया.
है घना ए बहुत धुंधलका श्यामला
श्याम बदरों से पूरा नभ भर गया
बारिश में ऐसा रस क्यों घुला.
देव दनुज व बिहग प्यार खोजें
मन उकसाता चला तो चल ही गया.
है उड़ते विहग ही प्रातः कर्म में
फिर मनुज क्यों न छोड़े आलस्य को.
कर्म जीवन में ऐसा घनीभूत है
इसकी पूजा सदा ही संगीत है.
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