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पंद्रह अगस्त २०१५ को आवश्यक कार्य पड़जाने की वजह से मुझे यात्रा करनी पड़ी. यूँ तो सुबह निकलते हुए मेरा मन थोड़ा उदास था,”कालोनी में स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम की तैयारी पूरी थी.पंडाल पूरा सजा हुआ था… कार्यक्रम शुरू होने में २-३ घंटे बाकि थे.” पर मुझे तो शक्तिनगर -वाराणसी इंटरसिटी पकङ कर घर जाना था सो मुझे यात्रा करनी पड़ी.
बसस्टैंड पर पंहुचा तो वहां बस पकड़ने वालों की संख्या ठीकठाक थी.शनिवार ओर रविवार का अवकाश होने की वजह से कई लोग अपने घरों ओ रिश्तेदारों के यहां जा रहे थे.हम लोग अनपरा रेलवे स्टेशन से इंटरसिटी पकड़ कर बनारस रवाना होने वाले थे.मेरे मन में एक विचार कौंधा यह निबन्ध उसी की परिणीति है.मने सोचा,” क्यों न रस्ते में पड़ने वाले स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम का एक तुलनात्मक अध्ययन कर लिया जाये, इससे देशाटन के साथ अपनी अभिरुच भी पूरी हो जाएगी.”
धीरे-२ रेलगाड़ी की रफ़्तार बढ़ती चली गयी वॉर हम लोग जिसमे कुछ लोग संस्थान के भी थे चोपन रेलवे स्टेशन पर पहुंच gye.वैसे तो अमूमन यहां को स्टापेज ३० मिनट को होता था. पर आज गाड़ी १.० घटे के ऊपर कड़ी हुए हो गयी पर चलने की कोय उम्मीद न दिख रही थी.यह दिन का लगभग १०.०० बज रहा था. पता करने पर पता चल की पूरा का पूरा सरकारी अमला ही स्वतंत्रता दिवस के सांकेतिक आयोजन में ब्यस्त है.रेलवे प्रमुख चोपन ने रेलवे सुरछा बालों के साथ ,गार्ड आफ ऑनर लिया तथा राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दी. किसी रेलवे स्टेशन पर आजादी का जश्न मानते मैंने पहली बार देखा था.मुझे महसूस हुआ की राष्ट्र्य पर्व की भावना यहां के स्टाफ व कर्मचारियों में मौजूद है.यात्रीगण अपने कैमरो से ध्वज सलामी की फोटो खींच रहे थे.
ऐसी बीच हमे एक अलर्ट सुनाई पर,” जो भी लोग प्लेटफॉर्म न.२ पर खड़े हो कृपया हट जाएँ उस पर पटाखे लगे हुए है.!!”हमारी गाड़ी प्लेटफॉर्म न.१ पर खड़ी थी.हम लोग भी पटाखों की उपस्थिति ओ उनके फूटने को लेकर सस्ंकित थे.
थोड़ी देर बाद उत्तर की तरफ से एक खली इंजन प्लेटफॉर्म न.२ आया और धड़ाम-२ की आवाज के साथ पटाखे फूटने लगे.जैसे जैसे इंजन आगे बढ़ता गया पटाखे फूटते गए. रेलवे ने पटाखे रलवे लाइन के ऊपर चिपका दिए तेजीसे ऐसा होण्या.रेलवे द्वारा पटरियों पर पटाखे फोड़ने का यह नायब तरीका था इसने आमजनता को भी रोमांचित किया.
चोपन रेलवे स्टेशन के विपरीत दिशा में एक खेल का मैदान था जहाँ पोल से लेकर किनारों तक राष्ट्र्धव्ज कतारों में सजाया गया था.उसकी शोभा बड़ी ही मनोहारी लग रही थी.वातावरण में सावन की हरियाली छायी हुय थी.चारो और हरे भरे पेड़ पौधे वातावरण को रमणीयता प्रदान कर रहे थे.यह आयोजन आमजनता की रास्ता के प्रति कृतज्ञता ब्यक्त कर रही थी. ये आयोजन महज एक आयोजन न होकर राष्ट्र के लिए एक राष्ट्रीय संस्कृति का निर्माण करते है.बचपन से लेकर जीवन पर्यन्त ब्यक्ति इस तरह के आयोजन देखता रहता है,जिससे यह विचार, भावना हमारे भीतर एक आस्था ओ संस्कृति का निर्माण कर लेते है.
चोपन रेलवे स्टेशन पर ध्वजारोहण के बाद रेलवे सुरछा बालों ने देस की आम जनता के साथ अमर शहीदों की याद में नारे लगाये, तथा अंत में जय हिन्द ओ भारतमाता की जय कहना नहीं भूले.मेरेमन में उस गाने की पंक्ति स्म्रत हो गयी जिसमें कहा गया था ,” शहीदों की चिताओं पर लगगें हर बरस मेले …वतन पर मरने वालों का यही बाकि निशान होगा…”राष्ट्रीय स्वाभिमान के जनक सुभाष चन्द्र बोस आज नहीं हैं पर उनका नारा ‘जय हिन्द’ शायद जब तक भारतीय फ़ौज रहेगी तब तक रहेगा.
जब ट्रेन आगे बढ़ते हुए राबर्ट्सगंज स्टेशन पर पहुंची तो हमने देखा की स्टेशन के बाहर एक टेबल पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के चित्र पर माला पहना कर रखा हुआ था.एक कृतज्ञ
राष्ट्र कर्तब्य बोध झलक रहा था.जिन्होंने देस के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया राष्ट्र आज उन्हें नमन कर रहा हैं.
रेलवे लाइन के दोनों तरफ पड़ने वाले सरकारी संस्थानों,नगरपालिकाओं,थशीलों ,कचरी …इत्यादि स्थलों पर इतरांगा शान से लहरा रहा था.१५ अगस्त की राष्ट्रीय त्यौहार की अभिब्यक्ति परिलछित हो रही थी. रह में पड़ने वाले छोटे-२ विद्यालयों में भी स्वतंत्रता दिवस आयोजन कार्यक्रम देखे गए.महविद्यालय ओ कोचिंग संस्थानों पर भी तिरगा लहरा रहा था.कई विद्यालयों के बच्चे सांस्कृतिक कार्यक्रम करते देखे करते गए.कहि -कहि जन समूह को टीचर संबोधित कर रहे थे,पर कहि पर लगता था की छेत्रिय संभ्रांत ब्यक्ति ही संबोधन कर रहे हैं.चुनार व मिर्जापुर में इस प्रकार के आयोजन की बहुलता थी. यह सायद समय का तकाजा था की इन स्थानो से गुजरते हुए लगभग दिन के १.०० बज चुके थे.
इसलिए हरी ट्रेन जब और आगे बढ़ी ओट इस प्रक़र के कार्यक्रमों की पूर्णाहुति हो चुकी थी.
वाराणसी पहुँचते-२ हमारी गाड़ी राजघाट पूल से सीधे सहर में घुस गयी.शहर के गणमान्य लोग अपने घरों पर तिरंगे फहराये हुए थे.उत्तर प्रदेश जल निगम की टंकी पर फहरा हुआ इतरांगा बरबस ही अपनी आओर ध्यान खीचन रहा था, क्योंकि वह काफी ऊंचे पर उड़ रहा था,वहां पर उसका फहराया जाना काफी दुस्कर कार्य रहा होगा.वह पानी के टंकी के ऊपर लगभग १० फीट ऊपर लहरा रहा था.वाराणसी कैंट स्टेशन पहुँचते-२ लगभन दिन के ३.३० बज चुके थे.
आजादी का पर्व हमे उल्लासमय बनाताहै था राष्ट्र्य की एकता को पुरजीवित करता है. हमे एकनिष्ठ होने की प्रेरणा देता है.इस बार तो देवबंद ने भी मुसलमानों से आग्रह किया था की राष्ट्रीय पर्व को दिल से मनाएं व खुशिया बांटें.
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