Vichar Gatha
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सास ननद बनाये जो खाना,
स्टोव कभी न धोखा दिया.
बारी बहू की ही जब आती,
जलने की उसकी पारी ही आती.
अपराध है जीवन को जलाना,
नारी को रखिये जीवित पलना.
अगर नारियों में जो हो एकता,
बहू जलने में होती बहुत ब्यग्रता.
दर्द जीवन में वैसे ही भरपूर है,
सालने को बची क्या कोई टीस है.
यौवना सुंदरी हो या हो कुरूपा,
बुढ़ापे को छोड़ा है कौन यहाँ.
जिस रूप में नारी पकड़ी गयी,
उसी रूप में नारी लूटी गयी.
बाग उजड़े यहां कलियाँ मुरझाईं,
पपीहा पुकारे वतन सुखदायी.
रेप की राजधानी है दिल्ली हुयी,
और मेट्रो न कोइ पीछे रहे .
ज्योति ने लड़ा जमकर मोर्चा लिया,
क्रूर शोषकों ने उसे न बचने दिया.
मौत की नींद सोयी जगा देश को,
बेटियां कैसे बचें सोचना है सभो को.
कलंकित होती रही आज तक नारी,
पशुवृति यहां तृप्ति होती रही.
धरा महफूज ओ गुलजार हो कैसे,
बिना जीवन में आये सदवृत्ति!!
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