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जब से स्वामी प्रसाद ने बसपा छोड़ी है .वह आरोप लगा रहे हैं की मायावती टिकटों की बिक्री करती है.वह वहां घुटन मसूस कर रहे थे इसलिए उन्होंने पार्टी छोड़ी.उधर मायावती है जो की दिनरात उन्हें यह कहने में निकाल रही है की स्वामी प्रसाद मौर्य गद्दार और स्वार्थी हैं इसलिए उन्होंने पार्टी छोड़ी तथा इससे पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा.बहन जी जब फर्क पड़ना नहीं है रोज रोज गाली- गलौज की भाषा क्यों प्रयोग कर रही हैं.जब तक आप दोनों का मन जमा यह थोड़ें नहीं लगभग २० साल का लम्बा रिस्ता था.एक बहुत अच्छा रिश्ता कहा जा सकता है.अब तो रास्ते अलग हो चुके है फिर बार-बार स्वामी प्रसाद को आप गद्दार क्यों बोल रही है??यदि स्वामी ने गद्दारी की होती तो सायद मुलायम के पुराने शासनकाल कल में आपकी पार्टी के टुकड़े नहीं बच्चे होते. आज बसपा इतना बड़ा वटवृछ नहीं बन पता .स्वामी और कुछ भी हो सकते हैं लेकिन गद्दार तो कतई नहीं हो सकते. मायावती 14 % जाटव जाती के नेता हैं तो स्वामी प्रसाद भी ४% कुशवाहा जाती के नेता हैं. वोटों के प्रतिशत का अंतर हो सकता लेकिन स्वाभिमान सम्मान से बड़ा कुछ भी नहीं हैं. ऐसी ही यदि मायावती गद्दार बोलती रही तो वो ४% कुशवाहा वोटो से हाथ धो बैठेंगी. अब तो यह निर्विवाद सिद्धा हो गया हैं की स्वामी प्रसाद की अपने स्वजातीय वोटों पर पकड़ है. और ओह इस समाज के एक बड़े नेता है.
कुशवाहा जाती स्वाभिमानी जाती हैों ओह अपने स्वाभिमान सम्मान के खिलाफ कोई समझौता नहीं करेगी.चुनाव दूर नहीं हैं बहन जी अबकी बार आपको पता मालूम पड़ जायेगा. की स्वामी के रहने से फायदा था या सतीश मिश्रा के रहने से फायदा होगा. मायावती जी आपने सिद्धांत छोड़ा है. बसपा का मूल मिशन ख़त्म हो चूका है. मुठी भर लोग हैं जिनके करीबियों को काफी टिकट मिल रही हैं. आज बसपा ४% अगड़ी जाती के लोगो को ६०% टिकट दे रही है कहां गया बाबा साहब का वह मिशन जिसमे गरीबों व् शोषितों के हितों की चिंता हुआ करती थी.बसपा का बस्ता बहुत स्वामी के करीबियों ने ढोया अब वे किसी और बस्ते के इंतजार में है.
देखना है की दलित और ब्राह्मण का गठजोड़ आगामी चुनाव में कितना लाभ दिला पाता है बसपा को??.
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