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फूल के दिन पत्तियां -कहानी का प्रथम भाग

Vichar Gatha
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१४.०२.२०१५
समय-सुबह८.०५ बजे
रोज ही की तरह मैं ऑफिस में पहुच कर बैठा था. मन कुछ सोच रहा था.”…यह प्रेम दिन भी क्या अन्य दिनों की तरह बीत जायेगा या कुछ हटकर होगा….”मैं इन्ही विचारों में खोया हुआ था, ऐसी बीच लगभग ८.१५ बजे,मेरे बगल की ऑफिस वाले रमाकांत व् डा. संदीप मेरे टेबल के पास आये.वे लोग प्रायः मेरी ऑफिस पार करके अपने व्यावसायिक स्वास्थ्य केंद्र को जाया करते थे. परन्तु आज वे लोग मेरे पास आ गए.सामान्य मित्रवत अभिवादन के बाद रमाकांत ने मुझे कुछ पत्तियां देते हुए कहा ,”लीजिये फूल तो नहीं मिल पाए ; पत्तियां हैं इन्ही
से काम चलाइये!”
मैं थोड़ा ख़ुश हुआ और सोचने लगा,”कुछ भी नहीं होने से कुछ होना तो अच्छा ही हुआ.जिंदगी में अगर फूल नहीं मिल पा रहे हैं तो पत्तियो से काम चलाया जा सकता है.
विचारों की श्रृंखला बढ़ती गयी…
मेरे हिस्से में आखिर पत्तियां ही क्यों हैं?
क्या मेरा फूलों व् महकती गुलाब की कलियों के पाने का अधिकार ख़त्म हो गया है?
जीवन में कौन से उन्नत सत्कर्म मैं न कर सका ?
शेष जीवन में मैं उसे कैसे कर पाऊँ?….इत्यादि .”
फ़िलहाल मझे इस बात से थोड़ी ख़ुशी थी की रमाकान्त की दी हुयी पत्तियां बिलकुल हरी न थीं. बल्कि एक तरफ हरी व् दूसरी तरफ गुलाबी थी.मैं इस एहसास से खुश था की आ मुझे एक ऐसी प्रिय सामग्री की भेट मिली थी जो की प्रिय के नाम से मिल रही थी.
कोई भी प्रेमी हो चाहे उसका प्रेम एक तरफा ही क्यों न हो.ऐसी प्रतीकात्मक चीजें जीवन के मोड़ पर छोटी -मोटी खुशियां दे जाया करती हैं.हर मनुष्य उसे सहेजना चाहता हैं जिससे समय की चलती हुयी गाड़ी में थोड़ा ठहराव आ जाये.
मनुष्य का अभिमान भी उसको प्रेम या अन्य मामलों में झुकने नहीं देता है.मेर साथ भी उस दिन इस ही हुआ.ज्यों ही रमाकांत ने मुझे पत्तियां सौपीं मुझे बेतुका लगा मैंने सोचा,” ये क्या फूल के दिन पत्तियां क्यों सौंप रहा है??”
अपना अहं बढ़ते हुए मैंने रमाकांत से कहा,” मेरे पास गुलाब भी है!!”(अपने कम्प्यूटर के पास रखा हुआ ताजे गुलाब का फूल उठाकर दिखाते हुए).इस छोटे से मजाकिया वाकिये के बाद रमाकांत व डा. संदीप अपने ओएच सी ऑफिस चले गए.
अपरान्ह में लंच पर जाते समय रमाकांत से फिर मुलाकात हुयी वह प्रश्नाकुल था.उसने पूछा ” सर आपको वह गुलाब का फूल किसने दिया. वह कौन है…???”

प्यार व् गुलाब के फूलों का संगम अदभुद माना जाता है. यहां तक लोग इन्हे एक दूजे का पर्याय मानते हैं. रमाकांत को नहो पता था की मुझे फूल किसने दिए हैं. वह मन की चुहल बाजियों में मशगूल था.उसे विस्वास था की जरूर किसी बाला ने मुझे यह फूल गिफ्ट किये हैं व् मैं किसी के प्यार में में आसक्त हूँ….
वास्तविकता यह थी की वह गुलाब का फूल किसी के प्यार की भेंट न होकर मेरे ऑफिस के प्यून रामलगन की सेवा भेंट हुआ करता था. एक दिन मैंने रामलगन से कहा,”रामलगन मुझे गुलाब के फूल बहुत पसंद हैं.यदि तुम्हें ज्यादा मिलते हों तो मुझे पूजा के चुने फूलों में से एक फूल दे दिया करो…” तभ ई से रामलगन प्रत्येक दिन उन पुष्प गुछो से एक गुलाब का फूल मेरे आने से पहले मेर कम्प्यूटर के पास रख देता था.जिसे मैं दिन में सूघने के रूप में उपयोग करत रहता था.

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दिसंम्बर-१९८९
कुटीर महाविद्यालय,चक्के जौनपुर
राष्ट्रीय सेवा योजना कार्यालय,
सूचना-विशेष शिविर के लिए छात्र/ छात्राओं से आवेदन आमन्त्रित .
राष्ट्रीय सेवा योजना के विशेष शिविर में भाग लेने के लिए हम लोगों में उत्साह इसलिए दिखा क्योंकि उसमे एक सुविधा मिल रही थी.बताया गया की पोस्ट ग्रेजुएशन के प्रवेश में में १० अंको का वेटेज मिलेगा.सबमें आगे पढ़ने की ललक थी सो लोगों ने प्रवेश लिया.कुषेक ऐसे लोग भी थे जो की इंजीनियरिंग या अन्य सेवाओं के लिए तयारी में थे उन लोगों नहीं भाग लिए.पूर्वांचल की गरीबी बेकरी व् लाचारी को देखते हुए ज्यादातर लोगों ने कैंप अटेंड करने का ही फैसला लिया.
हम लोग बी.एससी. प्रथम के छात्र थे.कुल ६ सदस्यों के १० टीमें बनायीं गयी.मैं अपनी टीम का लीडर चुन लिया गया.टीम के सारे कार्यों को मुझे आगे बढ़ कर करना होता था तत्थ साथियों को भी ललकारना पड़ता था.कुछ लोग एक नेता के रूप में स्वीकार कर नहीं पा रहे थे,जबकि कुछ लोग भौतिक कार्यों में पिछड़ जा रहे थे.टीम के सारे सदस्य पढ़ाई लिखाई का ही काम कर रहे थे,लिहाज वे-मिटटी खोदना उठाना तथा समतलीकरण के कार्य प्रायः नही किये थे.जिससे मुश्किल हो रही थी.कुछ सदस्यों की कामचोरी की आदत भी होती थी. एक दिन कैंप इंचार्ज ने काम के आधार पर प्रथम द्वितीय व् तृतीय पुरस्कारों की घोषणा कर दी. उसके बाद टीम प्रबन्धन का काम आसान हो गया. अब सबको जोश आ गया की मेरी टीम को जीतना है. इस जीत के जज्बे ने सब काम काफी आसान कर दिया. सब लोग मिलजुल कठिन से कठिन काम चुटकियां बजाते कर लिया करते थे.टीमों में बेहतर प्रदर्शन की जंग छिड़ गयी.
दोपहर भोजन के बाद २.३०ब्जे से विचार गोस्ठी होती थी जिसमें कई बिषय विशेषज्ञ बुलाये जाते थे.एक ऋषि जी आये थे जिन्होए योग पर उन दिनों अच्छा ज्ञान दियकथा.जिसमे सूर्य नमस्कार तथ पवन मुक्तासन के बारे में ज्यादा बताया गया था.कभी लोकल प्रधान, राज नेता
था गणमान्य ब्यक्ति होते थे.
शाम ५.० बजे से कैंप के सदस्यों के आपस में खेल कूद व् ब्यायाम का समय था. इसका भी अपना मजा यह था की उस बड़ी उम्र में एक आदमी बिभिन्न प्रकार के के नए खेल सिखाता था था उसके डेमोस्ट्रेशन करता था.हम शाम को खेलों का आनद उठाते थे.
रत ८.० बजे डिनर होने के बाद कैम्पफायर का का कार्यक्रम होता था. जिसमे बिभिन्न बिषयों पर डिबेट ,भाषण था मजेदार वाकिये सुनाये जाते थे..
जवानी के दिन थे.नसों में जोश व् मन में उमंगें हिलोरे ले रही थी..आपस में मजाक मस्ती का बहाना व् साथ पढ़ने वाली बी.ए की लड़कियां हुआ करती थी.उन दिनों बी.एससी. के क्लास में कोई लड़की नही थी.इसका शिकवा उन दिनों था और आज भी है.अक्कसर हम लोग किसी साथी के साथ किसी लड़की का चक्कर जोड़कर उसे चिढ़ाने का काम किया करते थे.उन दिनों यह भी एक अति आनंद का विषय था. कुछ लड़को व् लड़कियों का कोड वर्ड बन गए थे जो की केवल एक समूह के लड़कों को ही पता होता था.इसमे मुझे धर्मेंद्र व् मालिनी के मेल के लिए डी-यच टेंड टो यचकट(मालिनी) स्क्वायर एक प्रसिद्ध जुमला था.यह नामकरण फिजिक्स के एक फार्मूले यचकट = यच/२ पाई पर था.इसके भीतर भी एक कहानी यह है की मालिनी बड़े ही स्वर में स्वागत गीत गति थी.हर अवसर पर गीत अक्सर वही गाती थी.यह अच्छा स्वर उसे गले के ऑपरेशन के बाद मिला था.
कैंप में पहली रात किसी को नीद नही आ रही थी.आपस में ढेर साडी बाटे.मस्तिया चुहलबाजियां जिसका अंत नहीं था.मेरे टीम के सदस्यो में जावेद ,संजय सिंह,शंकर पाल व् दो अन्य लोग थे.अपने कार्य व् ब्यवहार से संजय सबका दुलार बन गया था.जावेद मेरे पूर्व विद्यालय से था . शंकर कुशल कार्य करता था.
पहली ही रात को भोर में चार बजे जावेद कालेज के पार्क से ताजे गुलाब की कलियाँ तोड़ लाया था मुझे नीद से उठाया और गिफ्ट किया.फिर उसने कहा इसे सूघिये अब सोने की क्या जरूरत है.दिसंबर की घनघोर सर्दी में भी कैंप में मजा आरहा था.भोर की हवा काफी सर्द थी साथ ही काफी ताजी थी; गुलाब की कली को मैंने सूघना शुरू किया फिर सूँघता चला गया. वह यौवन कली का अप्रतिम आनद था .यह उन दिनों अति आनंदित कियाथा फिर कैंप में प्रतिदिन ऐसा करने का सिलसिला बन गया…..जीवन का शगल बन गया.
आज भी जब भी मुझे गुलाब की कलियाँ मिल जाती है. ……

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