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आज विजय दशमी का पर्व मन लिया गया.लोगों ने बुराई के प्रतीक रावण को मारा और उसका पुतला जला दिया.वास्तव में रावण मरता नहीं.केवल उसका प्रतीक ही मरता है वो भी कुछ समय के लिए. ऐसा लगता है की रावण मरते ही फिर पैदा हो जाता है.रावण कोई और नहीं हमारे मन के भीतर,समाज के भीतर जो तमाम बुराइयां है वही रावण है -चोरी,भ्रस्टाचार,जातिवाद,भतीजावाद,शोषण, व् बलात्कार इत्यादि. हर साल रावण दहन के बाद भी ये बुराइया समाज में कैसे बची हुयी है. इन्हे तो कब के ख़त्म हो जाने चाहिए थी. पर ये बुराइयां बची हुयी हैं तो वास्तव में रावण जीवित है.हम अपना श्रम व् संसाधन ब्यर्थ में बर्बाद कर रहे है. रावण को मारने के लिए तथा रामराज्य के प्रतीकात्मक प्राप्ति के लिए. दोनों ही चीजे मृगमरीचिका बनी हुयी है.
यच्छा प्रश्न यह है की समाधान क्या है? समाज में सुचिता कैसे आएगी? एक महिला का सम्मान अकेले में कैसे बना रहेगा? शोषण व् संग्रह के मनोविकार को से कैसे बाहर निकला जाये?
राजनीति आज देश का सबसे बड़ा ब्यापार बन गया है.जब तक राजनीतिकक सुचिता नही आ पायेगी देश में स्वच्छ प्रशाशन की आशा नही की जा सकती.जब शाहक वर्ग ही ईमानदारी व् नैतिकता का प्रदर्शन नही करेगें तो आमजन तो इससे दूर ही रहेगें.उम्मीद करता हूँ आगे अच्छा होना चाहिए.हमे अपना ,अपने देश के साथ साथ महिलाओं व् कमजोर वर्गो के सम्मान का ख्याल रखना चाह्यिये.
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